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Saturday, April 21, 2012

मायावती की मानहानि करता हुआ कार्टुन प्रसिद्ध करनेवाले संदेश के तंत्री के खिलाफ कानूनी कारवाई

इस कार्टुन में मुलायम मायावती से कहता है, साले चमार और
मायावती उसे कह रही है, मुलायम, साले गंवार, बोलना शीख लें,
तनीक कानून का ध्यान रख.

गुजरात में मायावती की मानहानि करता हुआ कार्टुन प्रसिद्ध करनेवाले संदेश अखबार के तंत्री के खिलाफ सोलह साल पहले कानूनी कारवाई शुरु की गई थी. 1996 में जब एट्रोसीटी एक्ट के तहत कारवाई शुरु की गई तब तंत्री प्रशासन तथा गांधीनगर तक अपने प्रभाव के चलते सी समरी करवाने में सफल हुए थे. बाद में 2003 में सेशन्स कोर्ट ने मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट के निर्णय के खिलाफ आदेश देते हुए फीर से जांच का आदेश दिया. उस आदेश के साथ हमारी अर्जी यहां प्रसिद्ध की है.



अहमदाबाद शहर एडी. सेशन्स जज की अदालत में
2003 की क्रीमीनल पुन:आदेश की अर्जी नं-234

अरजदार: वालजीभाई हिरालाल पटेल, उम्र 65, धर्म - हिन्दु, व्यवसाय निवृत्त, निवास - डॉ.आंबेडकर स्ट्रीट, फुटी मस्जिद के पास, दरियापुर, अहमदाबाद.
विरुद्ध
प्रतिवादी:     1. फाल्गुन चीमनभाई पटेल, तंत्री- संदेश दैनिक वर्तमानपत्र, रेंटियावाडी, पित्तलीया बंबा, अमदाबाद-380001.

2. गुजरात सरकार
अरजदार की तरफ से, विद्धान एडवोकेट श्री एच.  आर. सोलंकी
प्रतिवादी-1 की तरफ से एटवोकेट श्री पी. एन. पटेल
प्रतिवादी राज्य सरकार की तरफ से विद्वान ए. पी. पी. श्री एम. सी. वाघेला

फैसला

1.      अनुसूचित जातिओं और अनुसूचित जनजातिओं (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1) (10) के तहत शिक्षापात्र अपराध होने का आरोप रखकर अरजदार द्वारा दाखिल की फरियाद के कारण उत्पन्न कार्यवाही में सी समरी लागू पडने से माननीय  मेट्रोपोलिटन मेजीस्ट्रेट, कोर्ट नं-18 ने ता. 7-8-2003 को दिये आदेश की वजह से पुन:जांच मांग की गई है।

2.      यहां उपस्थित हुए प्रश्नों को अच्छी तरह से समझने के लिये कुछ संक्षिप्त हकीकतों का वर्णन करना जरूरी है, जो निम्न अनुसार है.

प्रतिवादी नं-1 दैनिक संदेश के व्यवस्थापक तंत्री और प्रकाशक है और ऐसा लगता है कि उक्त वर्तमानपत्र में ता. 29.7.1996 को एक आपत्तिजनक कार्टुन प्रसिद्ध हुआ था. जिसका इरादा अरजदार के कहेने के मुताबीक, अपमानजनक और अनुसूचित जातिओं और अनुसूचित जनजातियों के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का था, क्योंकि ये कार्टुन में उत्तरप्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मायावती को हीन रूप से दर्शाया है. और अनुसूचित जाति के सदर मायावती को उत्तरप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव अपशब्द बोलते है ऐसा दर्शाया गया है. रजूआत ये है कि कार्टुन का इरादा अनुसूचित जाति के लोगों की भावनाओं का ठेस पहुंचाने का था, जिसकी वजह से अरजदार ने व्यक्तिगत फरियाद की. निवेदन ये है कि, संबधित विद्धान मेजीस्ट्रेट द्वारा सीपीसी की धारा 156 (3) के तहत हुक्म किया गया और शाहपुर पुलिस स्टेशन के साथ जुडे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने जांच-पडताल की. निवेदन ये है इस तरह से हुई जांच के कारण उपस्थित परिस्थिति में किसी प्रकार का अपराध हुआ हो ऐसा दिखाई नही देता ऐसा जांच अधिकारी के द्वारा दिये गये रिपोर्ट को विद्वान मेजीस्ट्रेट ने बाद में आश्चर्यजनक रूप से स्वीकारा है और ऐसा भी निवेदन है कि, सी समरी का स्वीकार करना यह विद्वान मेजीस्ट्रेट के लिये स्पष्टत: भ्रांति है.
3.      अरजदार की तरफ से विद्द्वान एडवोकेट श्री सोलंकी ने रजूआत की है कि विवादीत हुक्म स्पष्टतया गेरकानूनी है और उसे रद्द करना अत्यंत जरूरी है. निवेदन ये है कि विवादीत फैसले को न्यायोचित गिना जाय ऐसा कोई कारण विद्धान मेजीस्ट्रेट ने दिया नहीं है. निवेदन ये है कि निर्णय के पन्ने नं-9 पर दिये गये सर्वोच्च अदालत के फैसले का प्रत्यक्षरूप से गलत अर्थघटन किया गया है. निवेदन ये है कि कार्टुन स्वंय भावनाओ को ठेस पहुचानेवाला है या फिर साले चमार शब्द अपमानजनक रूप से उपयोग करने का स्पष्ट उदेश्य दिखाई देता है. निवेदन ये है कि, अपने दैनिक पत्र में इस तरह का कार्टुन प्रसिद्ध करके प्रतिवादी नं-1 द्वारा प्रथम दृष्टि से स्पष्ट अपराध किया गया है और निवेदन ये है कि, इस परिस्थिति में विवादीत आदेश जारी न हो जाये और विनती है कि पुन:जांच की आदेश दे.

4.      पुन:जांच पडताल की अर्जी का विरोध करके प्रतिवादी नं-1 के विद्वान एडवोकेट श्री पटेल रजूआत करते है कि, पुन:जांच पडताल का ग्राह रखने की जरूरत नही है, क्योंकि प्रथम तो अरजदार दावा करने का अधिकार नहीं रखता. रजूआत ये  है कि, किसी भी संजोग में, डेप्युटी पुलिस अधीक्षक कक्षा के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अदालत के निश्चित फैसले के तहत फरियाद की जांच की है और उन्हें प्राथमिकरूप से लगता है कि कोई अपराध हुआ ही नही है और उन्होंने सिफारिश की है कि सी समरी फाईल करके कार्यवाही पूरी कर देनी चाहिये. निवेदन ये है कि पुलिस अधिकारी की इस सिफारिश का विरोध करने के लिये अरजदार को छूट नही है और किसी भी संजोग में विद्धान न्यायमूर्ति ने जांच अधिकारी के द्वारा पेश किये विवरण को योग्य रूप से ध्यान में लिया है और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि किसी भी प्रकार का अपराध ना होने के कारण कार्यवाही पूरी कर देना जरूरी था. रजूआत ये है कि विवादीत कार्टुन में मात्र दो व्यक्ति, एक श्री मुलायमसिंह यादव और दूसरी है सुश्री मायावती को दर्शाया होने का और वह उन्ही के संदर्भ में होने का स्वीकार करने से अरजदार, किसी भी संजोग में, फरियाद नही कर सकता और अगर कार्टुन प्राथमिक तौर पर कोई अपराध करता हो तो भी, इस संदर्भ में फरियादी को फरियाद करने की छूट नही हो सकती. हकीकत में, सदर कार्टुन प्रभावित व्यक्ति, सदर कु. मायावती और श्री मुलायमसिंह यादव को इसके संदर्भ में कोई तकरार हो सकती है, रजूआत ये है कि अरजदार की इस संदर्भ किसी भी तकरार की सुनवाई नही हो सकती और निवेदन ये है कि, इस परिस्थिति में विवादीत आदेश देने के बदले विद्वान न्यायमूर्ति पक्ष ने कुछ भी गलत, अयोग्य या गैरकानूनी नही है और जिससे इस विषय में किसी हस्तक्षेप की जरूरत नही और पुनजांच पडताल को रद्द कर देना चाहिये.

5.      ये ध्यान पर लेना जरूरी है कि, दोनों पक्षों के निवेदनों को ध्यान में लेकर और ट्रायल कोर्ट के रिकार्डस और कार्यवाही को ध्यान में लेने के बाद लगता है कि, दोनो वादीओ ने यानि की अरजदार के साथ ही प्रतिवादी नं-1 दोंनो ने बहुत से निर्णयों का आधार लिया है. परन्तु इस अहेवाल को समग्ररूप से पुन:तपास के लिये विद्द्वान मेट्रोपोलिटन मेजीस्ट्रेट की अदालत में भेजने की कार्यवाही के लिये ये केस योग्य है, ऐसा मेरा मंतव्य है और इसी वजह से उपरोक्त फैसलों का संदर्भ फीर देने की जरूरत नही है. मेरे नजरिये से, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातिओं के लोंगो की भावनाओं को ठेस पहुंचे इस तरह का अपराध होने का पर्याप्त प्रथमदर्शी सबूत काटूर्न देता है. रोसम्मा थोमस और अन्य के खिलाफ सर्कल इन्सपेक्टर ऑफ पुलिस, त्रिपुनिथारा और अन्य केस में (1999 Cri. L. J. 1666) केरल हाईकोर्ट ने दिये फैसले में स्पष्टतौर पर गौर किया है कि अनुसूचित जनजाति के सदस्यों का खुलेआम अपमान करने का या फिर उसे नीचा दिखाना प्राथमिक गुना अथवा इरादा एट्रोसीटी एक्ट की धारा 3 (1) (10) के तहत अपराध माना जायेगा और सिर्फ जाति के नाम पर संबोधन करना ये अपराध है या नहीं, आरोपी का इरादा था या नहीं ये सभी प्रश्न प्रारंभिक तौर पर नक्की नहीं हो सकते और शुरूआत में एफआईआर रद्द नही कर सकते. अरजदार फरियाद दाखिल करने और पुन:तपास करने के लिये कानूनी सत्ता नही रखते और श्री पटेल की रजूआत में मुझे कोई खास वजूद नहीं लगता. एस्ट्रोसीटी एक्ट की धारा 3 और खासतौर पर सदर का कानून की धारा 3 (1) (10) के प्रावधान को पढने से स्पष्ट लगता है कि, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगो का जाहेर में अपमान करने की वृत्ति रखनेवाले व्यक्ति के द्वारा किये गये अपराध किसे कहते है इस विषय में ध्यानपूर्वक विचार किया गया है. अनुसूचित जाति के किसी व्यक्ति को अगर सार्वजनिक अपमान का सीधा असर न होती हो तो, इसके संदर्भ में फरियाद दाखिल करते समय रोके अथवा ऐसा कुछ भी उपरोक्त प्रावधान में देखने को नही मिलता, ऐसा मेरा मानना है. मेरे अनुसार, एस्ट्रोसीटी एक्ट की धारा 3 (1) (10) में समाविष्ट प्रावधान को पुन: उद्धृत करना जरूरी है, जो निम्न अनुसार है.

             3. अत्याचार के अपराधों के लिये सजा.
 1. अनुसूचित जातिओं और अनुसूचित जनजातिओं का सदस्य ना  हो ऐसा कोई व्यक्ति,

10. किसी भी सार्वजनिक स्थानों पर अनुसूचित जातियों अथवा अनुसूचित जनजातियों के किसी सदस्य को अपमानित करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करे या नीचा दिखाये तो दंड सहित 6 महिने से कम और पांच साल तक बढाकर उससे ज्यादा हो सकती.

मेरे मतानुसार इस संदर्भ में पटेल के निवेदन में कोई योग्यता नहीं है. तथा प्रारंभिक तौर पर एफआईआर रद्द करना गलत तथा अयोग्य होगा, जो विवादीत हुक्म के कारण हुआ है. मेरे मतानुसार विवादीत हुक्म में पुन:विचारणा करने की जरूरत है और पक्षकारो को उनके तथ्यों को फिर से प्रस्तुत करने का मौका देना चाहिये. इसलिये मैं निम्न आदेश देता हूँ.

आदेश
पुन:जांच पडताल करने का आदेश दिया जाता है. ता. 7-8-2003 के विवादीत आदेश को रद्द किया जाता है. शाहपुर पुलिस स्टेशन के साथ जुडे पुलिस अधिकारी के द्वारा प्रस्तुत की गई अर्जी के विषय में पुन:जांच पडताल करने के आदेश के साथ कार्यवाही विद्वान मेट्रोपोलिटन मेजीस्ट्रेट कोर्ट नं-18 कोर्ट को सुप्रत किया जाता है. और एट्रोसीटी एक्ट की धारा 3 (1) (10) के प्रावधान को अनुसार हकीकत और परिस्थितियों को ध्यान में लेने के बाद ही योग्य आदेश दिया जाता है. उसके अनुसार पुनतपास रद्द की जाती है.

ता. 31 जनवरी 2005 को भरी अदालत में सुनाया गया है.

                          (पी.बी.देसाई)
                       एडीशनल सेशन्स जज
                    कोर्ट नं-6, अमदाबाद शहेर.











Tuesday, April 17, 2012

क्या पसंद करोगे - गुजरात मोडेल या बिहार मोडेल


बिहार की रणवीर सेना ने गुजरात की विश्व हिन्दु परिषद का
 अच्छा विकल्प दिया है
बिहार में ऊंची जातिओं के जमीनदारों ने भूमिहीन दलित खेतमजदूरों को कुचलने के लिए बनाई रणवीर सेनाने 1996 में बथानी टोला गांव में 21 लोगों की हत्या की थी, जिसमें ज्यादातर बच्चे और औरतें थी. इस केस में सबूत ना होने की वजह से हाइकोर्ट ने तमाम 62 मुज़रीमों को छोड दिया है. इससे पहले आरा की सिविल कोर्ट के एडी. जिल्ला सेशन्स जज ने इनमें से 23 मुज़रीमों को सजा फरमाई थी. भोजपुर जिल्ले के सहार ब्लोक के बथानी टोला गांव में मारे गए लोग दलित और मुसलमान थे.

बिहार की तुलना में हमारा गुजरात कितना खुशकिस्मत, समृद्ध और वाइब्रन्ट है! यहां सवर्णों को रणवीर सेना बनाने की कोई जरूरत ही नहीं है. यहां विश्व हिन्दु परिषद बहुत अच्छा काम कर रही है. पीछडों, दलितो, आदिवासियों को हिन्दुत्व का दारू पीलाकर, हाथ में शस्त्र थमाकर हमारी परिषद मुसलमानों के सामने लडने के लिए सज्ज करती है. दस साल में बिहार में जितनी हत्याएं होती है, इतनी गुजरात में दस दिन में हो जाती है. फिर दस साल के लिए कितनी शांति, कितना सुकुन! ना कोई संताप, ना पश्चाताप! वाइब्रन्ट गुजरात! वाइब्रन्ट गुजरात!    

Sunday, April 15, 2012

बाबासाहब को संविधानसभा में किसने भेजा - बेचारे मोदी को क्या पता


प्राचीनकाल में जिन्हे चांडाल के नाम से बुलाया
जाता था, वही नामशुद्र जाति के सदश्य का यह
चित्र 1860 का है. बाबासाहब को संविधानसभा
में भेजनेवाली यह जाति का इतिहास हम भूल
जाएंगे तो हमें हमारी भावी पीढियां माफ नहीं करेगी


'सामाजिक समरसता' के प्रकरण 'डॉ. बाबासाहब अंबेडकर: क्रान्तिकारी समाजपुरुष' में संघ के कट्टर प्रचारक मोदी इतिहास को तोडमरोड के रखने का सीलसीला जारी रखते हुए आगे लिखते हैं, "उस समय (मतलब आज़ादी के आंदोलन के दौरान) समूची कांग्रेस बाबासाहब अंबेडकर के खिलाफ थी. अंबेडकरवादी होने का अर्थ गुनहगार होना ऐसा उस समय का माहौल था. कांग्रेस का संपूर्ण संघर्ष अंबेडकरवादी लोगों के सामने था. देश पर कांग्रेस का झंडा लहराता था और देश में बाबासाहब अंबेडकर के बारे में लोग को ज्यादा पता न चले ऐसी कवायत योजनाबद्ध तरीके से हुई थी."

श्रीमान मोदी की इस बात को इतिहास की सच्चाई के संदर्भ में जरा देख लें. आज़ादी के संग्राम में समूची कांग्रेस बाबासाहब के खिलाफ थी, यह बात तो सही है. मगर वह कांग्रेस गांधी-सरदार-नेहरु की थी. देश में कांग्रेस के समग्र संगठन पर सरदार वल्लभभाई पटेल का प्रभुत्व था. और उन्ही के कहने से बाबासाहब को संविधान सभा में जाने से रोका गया था, और योजनाबद्ध तरीके से उनको महाराष्ट्र में चुनाव में हराया गया था. बाद में जोगेन्द्रनाथ मंडल जैसे दलित नेता, जो पूर्व पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) में मुस्लीम लीग के साथ थे, उनकी सहायता से बाबासाहब देश की संविधान सभा में गए थे. जोगेन्द्रनाथ मंडल ने बाबासाहब को समर्थन देकर कांग्रेस और सरदार वल्लभभाई पटेल की साज़िश नाकाम की थी.

बाबासाहब को (और उस वक्त कुछ समय के लिए मुस्लीम लीग को) समर्थन देने का दु:साहस करनेवाले मंडल की जाति नामशुद्र के समूचे क्षेत्र, हालांकि वह हिन्दु-बहुल क्षेत्र था, को सजा के तौर पर विभाजन के दौरान भारत से अलग करके (पूर्व) पाकिस्तान को सौंप दिया गया था. 1947 के बाद शुरु हुए सांप्रदायिक पागलपन में (पूर्व) पाकिस्तान के दलितों के साथ वहां के मुसलमानों ने नाइन्साफी की, दलित-विरोधी दंगों के बाद बीस लाख से ज्यादा दलित शरणार्थी होकर भारत में (अर्थात पश्चिम बंगाल) में आए. सीपीएम के बम्मन कम्युनिस्टो नें भी इन दलित शरणार्थीओ के प्रति कोई सहानूभूति नहीं दिखाई थी.

दलितों का इतिहास इस तरह से रक्तरंजित है और दिल को दहेलानेवाला है. संघ के प्रचारक इस तथ्यों को तोड मरोड कर रखते हैं, मगर हम इसे भूल नहीं सकते. नामशुद्र जाति आज भी जिंदा है. अपना पुराना कलंकित नाम नामशुद्र छोडकर नया गौरवान्वि नाम 'नामसेज' उन्होने अपनाया है. उनकी एक वेबसाइट नामशुद्र डोट कोम भी है, आप उसे अवश्य देखें.


Saturday, April 14, 2012

अमरीका के गुलाम नरेन्द्र मोदी






क्या यह गुलाम मानसिकता नहीं है? टाइम में तस्वीर छपने के
बाद मोदी ने बनवाए ऐसे होर्डिंग और अपने आप को दिया अभिनंदन

नरेन्द्र मोदी की किताब 'सामाजिक समरसता' की हमने कल बात की थी, जिसका प्रथम प्रकरण है 'डा. बाबासाहब अंबेडकर: क्रान्तिकारी समाजसुधारक.' मोदी ग्यारहवीं सदी के दलित शहीद वीर माया का बखान करते हुए कहते है कि वीर माया ने दो एकड़ जमीन नहीं मांगी थी. हम कहते है, हमारे दलित भूमिहीन मजदूरों को दो एकड़ जमीन ही चाहिए, तुम्हारी समरसता भाड में जाय.

इसी प्रकरण में पेइज-10 पर आगे मोदी जो बात लिखते हैं, वह आज उन्ही को सुनाने जैसी है. संघ के कट्टर प्रचारक लिखते हैं, " आज भी हम में गुलाम मानस इतना हावी है कि हमारी श्रेष्ठ बातें अमरिका या पश्चिम द्वारा आए तो ही हमें उत्तम लगती है. स्वामी विवेकानंद का हमने अमेरिका के जरिये ही स्वीकार किया. हमारी योगसाधना की अनमोल विरासत अंधेरे कोने में पडी थी, मगर पश्चिम के जरीये योग भारत में वापस आया तब देर से हम हमारी गलती स्वीकार कर रहे हैं. एक समाज की हेसीयत से हम हमारे श्रेष्ठत्व के साथ जीने को अभ्यस्त हो जाएंगे तो दुर्बलता छोडने की हमारी वृत्ति अपने आप जाग जाएगी. हमारी यह मानसिक दुर्बलता का कारण है, हमने स्वीकार की हुइ आयाती विचारधारा, गुलाम मानसिकता...."

नरेन्द्र मोदी का टाइम मेगेज़ीन के कवर पेइज पर फोटो छपने से उनके चमचों में जो खुशी की लहर फैल गई थी, वह क्या इसी गुलाम मानसिकता नहीं थी? मोदी और उनके भक्तजन क्युं अमरिका के टाइम मेगेज़ीन द्वारा स्वीकृति पाने के लिए इतने लालायित है? यह उनकी मानसिक दुर्बलता के सिवा और क्या है? अमरिका ने नरेन्द्र मोदी को विझा नहीं दिया. कोइ भी स्वाभिमानी व्यक्ति इतना बडा अपमान कैसे सहन कर सकता है? मोदी कुछ समय पहले चीन गए थे. उन्हे माओ ज़ेडोंग से शीखना चाहिए. अमरिका ने पचीस साल तक रीपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार को स्वीकृति नहीं दी थी. माओ कभी अमरिका के पैर छूने गया नहीं था, बल्कि खुद निक्सन 1972 में चीन जाकर माओ को मीला था.   

हमें तो नरेन्द्रभाई दो एकड़ जमीन ही चाहिए


नरेन्द्र मोदी की किताब 'सामाजिक समरसता' का प्रथम प्रकरण है, 'डॉ. बाबासाहब आंबेडकर: क्रान्तिकारी समाजसुधारक'. मोदी इसमें गुजरात के वीर मेघमाया के बारे में लिखते है. वीर मेघमाया बारहवीं सदी में हुए थे. राजा सिद्धराज सोलंकी के काल में पूरे गुजरात में भयानक अकाल पडा था. पाटन का विख्यात सहस्त्रलिंग तालाब सुख गया था. बम्मनों ने राजा से कहा, उसमें पानी तब आयेगा, जब किसी इन्सान की बली चडाई जाएगी. स्वभाविक है कि बली किसी दलित की ही चडानी है. राजा के आदमी दलित युवान मेघमाया को पकड के ले गए. हजारों सालों से ऐसे दलितों की बली इस देश में चडती ही रही है. मेघमाया को मरना ही था. मगर यहां कहानी में ट्वीस्ट आता है.

मेघमाया वधस्तंभ पर राजा से मांगते है, कि तू मेरे लोगों को मैं जो मांगु इतनी चीजें दें. हमारे गुजरात में इस कहानी हम सूनते हैं तो हमे रोना आता है. आज यह लिख रहा हुं तब बी मेरे रोंगटे खडे हो जाते है और आंखों मे पानी भर आता है. मगर मैं इमोशनल नहीं बनुंगा. दलितों की आड में, वीर मेघमाया के नाम पर, बाबासाहब के नाम पर नरेन्द्र मोदी गुजरात में कैसा इमोशनल हीस्टीरीया पैदा करते हैं यह जानना जरूरी है. मोदी लिखते है,

"बाबासाहब आंबेडकर के पहले भी दलित समाज ने अनेक समाजसुधारकों की भेंट दी है. इस शृंखला में सामाजिक क्रान्ति के एक प्रेरणापुरुष वीर मेघमाया का नाम जाना पहेचाना है. वीर मेघमाया का व्यक्तित्व ऐसा था कि जिससे सारी राज्यव्यवस्था प्रभावित हुई थी. वह सिर्फ दलित समाज की श्रद्धा के केन्द्र बने थे ऐसा नहीं था. उन्होने उस समय की राज्यव्यवस्था पर भी प्रभाव पैदा किया था. वीर मेघमाया ने समाज तृषातुर न रहे उसके लिए अपने प्राणों की आहुती दी थी. वह महापुरुष ने समाज नवचेतना जगाई थी. हमारी समाजव्यवस्था में पैदा हुए अस्पृश्यता के कलंक की उस वक्त कीतनी तीव्रता होगी, वह बात मेघमाया की दीर्घद्रष्टि से जानी जा सकती है. उन्हो ने राजसत्ता के पास कौनसी मांगे रखी? उन्हो ने कहा, हमें तुलसी और पीपल की पुजा करने का अवसर मीले. बारोट, वहीवंचा, गरोडा की व्यवस्था मीले. वीर मेघमाया की यह छोटी सी बात में एक लंबे युग की दिशा थी, दर्शन था. वर्ना किसी को ऐसा विचार आता है? हमें तो ऐसा विचार आयेगा कि दो एकड़ जमीन दे दो ताकि संतान सुखी हों. वीर मेघमाया ने ऐसे भौतिक सुखों की या व्यक्तिगत मांगे नहीं की थी. समग्र समाज के सुख की कल्पना की थी. इस समाज में कैसे नररत्न पैदा हुए है इसका यह उदाहरण है. यह समग्र हिन्दु समाज को समरस करने की उनकी कामना थी. डा. बाबासाहब आंबेडकर को उन्नीसवीं सदी में जो विचार आया था वही विचार मेघमाया को एक हजार साल पहेले आया था कि मेरा समाज इस सांस्कृतिक प्रवाह से दूर चला न जाए."

214 पन्ने की किताब का यह एक पन्ना है. मोदीसाहब की यह सारी लफ्फाजी का एक ही मध्यवर्ती सूर है, हिन्दु समरसता. आपको उसके लिए मर जाना है, मगर दो एकड जमीन नहीं मागना है. क्योंकि आप जैसे गधों को मैं ऐसे जमीन बांटता फिरुंगा तो फिर टाटा, अंबानी, एस्सार, फोर्ड, मारुती, जैसे बडे बडे लोगों को मैं जमीन कहां से लाके दुंगा. आप लोगों को जमीन मील जाएगी तो गरीब मेला में हम किसको पैसै बांटेगे, मंदिरों के आसपास भिखारी हमें नहीं मीलेंगे तो हमारा धरम नष्ट हो जाएगा, और लीबरलाइज़ेशन, ग्लोबलाइज़ेशन के लिए सस्ते मजदूर हमें कहां से मीलेंगे.

अफसोस की बात है कि गुजरात के दलितों में पैदा हुआ एलीट, सुविधापरस्त, सरकारी नौकरों का वर्ग भी इस बात को समजता नहीं है. हम लोग अमरेली से लेकर बनासकांठा के दुर्गम विस्तारों में दलितों की दो एकड़ जमीन की लडाई लड रहे हैं. इस लडाई को दलितों के बुद्धिजीवी वर्ग का कोई समर्थन नहीं मील रहा है. बम्मनवाद को गाली देना आसान है. जमीन की लडाई लडनी मुश्कील है. आज बाबासाहब को प्रणाम करते वक्त यह बात याद रहें तो कितना अच्छा होगा.

Wednesday, April 11, 2012

जातिवादी तंत्री के खिलाफ कानूनी कारवाई

अस्पृश्यो के संतानो को सार्वजनिक स्कूल में प्रवेश देना चाहिये या नहीं इस प्रश्न के विषय में अभिप्राय व्यक्त करते हुए श्रीमती ऐनी बेसन्ट कहती है, " अभी तो तीव्र गंध देनेवाला भोजन तथा दारु से पीढी दर पीढी के आदी उनके शरीर दुर्गंधभरे और गंदे है। विशुध्द आहार से पोषित और उमदा, निजी स्वच्छता की आदतों की विरासत में तालीम पानेवाले बच्चों के साथ स्कूल की एक कक्षा में अंत्यत निकट बैठने योग्य और विशुध्द और जीवनशैली से सुसभ्य होने में उन्हे कई साल लगेंगे। (एनी बेसन्ट)


"प्राचीन काल में माता-पिता बच्चों को अच्छी सौबत मिले इस लिये उन्हे साधु-संतो के प्रवचनों को सुनने के लिये भेजते थे। बच्चे पढने के लिये तपोवन में जाते थे। जो बच्चे तपोवन में पढने के लिये नहीं जा सकते थे, वे गांव की पाठशाला में पढते थे। वहां उन्हे शिक्षण के साथ साथ सदाचार का पाठ भी पढाया जाता था। आज के बच्चे स्कूल जाते है। वहा ‘नीच वर्ण' के बच्चों के संपर्क में आते है और खराब रीतभात सीखते है। आज की स्कूलो में 'खानदान कुल' के बच्चों के साथ खराब संस्कारवाले बच्चे भी आते है। और उनका रंग खानदान बच्चों को लगता ही है। पहले की पाठशालाओ में शिक्षक के रूप में मात्र 'ब्राह्मण' की पसंदगी की जाती थी, अब तो 'पिछडे वर्ग' के लोग भी ‘आरक्षण' का लाभ लेकर शिक्षक बन जाते है। ऐसे 'शिक्षक' बच्चों को अच्छे संस्कार नही दे सकते।" (रखेवाल दैनिक, गुजरात, ता. 19-12-2008).

यह पेरेग्राफ गुजरात के प्रमुख अखबारों में से एक गुजरात समाचार के कोलमिस्ट संजय वोरा (उर्फ सुपार्श्व महेता) के आर्टिकल का है. यह आर्टिकल गुजरात के अन्य जानेमाने अखबार रखेवाल में छपा था, जिसके तंत्री तरुण शेठ के खिलाफ हमने नागरिक हक्क संरक्षण अधिनियम 1955 की धारा 7/1/सी, अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 की धारा 3(1)(9), 3(1)(10) तथा इन्डीयन पीनल कोड की धारा-153 ए, धारा 500, 505(1)(ग) के तहत ता.17-9-2009 को एफआईआर दर्ज करवाई थी. अहमदाबाद की मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट की कोर्ट में केस अभी चल रहा है और 'रखेवाल' का तंत्री कम से कम एक दिन के लिए साबरमती जेल में जा चूका है. एफआईआर क्वॉश करने की तंत्री की पीटीशन गुजरात हाइकोर्ट ने खारिज कर दी है. गुजरात के मीडीया जगत में यह पहली घटना है.    

Thursday, April 5, 2012

दलित-मुसलमान को लडाने की साजिश


 वह प्रतिमा जिसे
तोडने की  अफवाह फैलाई गई
इस साल चौदह अप्रैल को गुजरात के किसी शहर में डॉ. बाबासाहब अंबेडकर की प्रतिमा का खंडन हुआ है ऐसा कोई रीपोर्ट आपको मिले और यह काम मुसलमानो ने किया है ऐसा उस रीपोर्ट में उल्लेख हो तो, हमें याद करना. हो सकता है कि ऐसी कोई घटना हुई ही ना हो. बीजेपी के सेफ्रन षडयंत्रकारियों की दलित और मुसलमान को लडाने की यह एक नई साज़िश भी हो सकती है. हम ऐसा दावे के साथ कह सकते है, क्योंकि पीछले साल सचमुच ऐसा षडयंत्र गुजरात के राजकोट शहर में गढ़ा गया था और उसे पुलीस की मदद से बखूबी अंजाम दिया गया था.

दलित अपने घरों को ताला लगाकर नीकल गए
हिन्दु राष्ट्र की पुलीस पीछे जो पडी थी
2011 की उस चौदह एप्रैल के दिन राजकोट शहर के गांधी वसाहत विस्तार में बाबासाहब की प्रतिमा का खंडन हुआ है और मुसलमानों ने ऐसा घिनौना काम किया है, ऐसी एक भयानक अफवाह फैलाई गई थी. यह अफवा किसने फैलाई यह तो किसी को मालूम नहीं था, मगर उसके बाद कुछ ही मिनटों में प्रतिमा के आसपास के क्षेत्र में रहते दलितों और मुसलमानों के बीच दंगा शरू हो गया.


घटना के पंद्रह दिनों के बाद भी ऐसी हालत थी 
पुलीस ने आकर दलितों को पीटा, सीपीसी की विविध धाराओं तहत कुल पांच एफआईआर दर्ज की और दलितों तथा मुसलमानों दोनों समुदायों के लोगों को लोकअप में डाल दिया. एक जगह पर चार-पांच दलितों की टोली पथराव करने नीकली थी तब कैसे पूरी इलेक्ट्रोनिक मीडीया की फौज उधर पहुंच गई और बार बार दंगाई दलितों के क्लिपिंग्स टीवी पर आने लगे. कुछ देर के बाद शहर की पुलीस कमिशनर गीता जौहरी उस जगह पहुंची और उसने उस तथाकथित प्रतिमा को वापस अपनी जगह पर रख दिया!

विपुल गोहील (14 वर्ष)

हमने ता. 30 अप्रैल को घटना स्थल की तहेकीकात की. प्रतिमा वहीं की वहीं है. उसे जरा सा भी नुकसान नहीं हुआ था. अगर कोई सचमुच इस प्रतिमा को हाथ से या कीसी चीज से गीरा देता है तो जरूर उसे क्षति पहुंचती. लगता था किसीने जानबूझकर प्रतिमा को संभालकर जमीन पर रख दिया था और अफवा फैलाई थी. दलितों को जो नुकसान होना था हो चुका था. उसी दिन घटना स्थल से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित महात्मा गांधी होस्टेल के दलित विद्यार्थीओं के साथ जो हुआ उससे षडयंत्र की बात को और पुष्टि मीलती है.

राहुल राठोड, पुलीस के समन्स अभी
भी उसका पीछा नहीं छोडते
होस्टेल के विद्यार्थियों ने जब प्रतिमा खंडन के बारे में सूना तो, कुछ विद्यार्थीओं ने होस्टेल के दरवाजे पर विरोध प्रदर्शन किया. थोडी देर में वहां आ पहुंची मालवियानगर की पुलीस चार मजले की उस होस्टेल में घुसकर,  विद्यार्थियों के कमरों के दरवाजे तोडकर, गालियां देकर, सबको बाहर निकालकर, मारते हुए पुलीस स्टेशन ले गई. हम जब होस्टेल में उन  विद्यार्थियों  से मीले तब वे परीक्षा की तैयारियां कर रहे थे. उन्होनें हमें बताया कि किस तरह से पुलीसने जुल्म किया.


संजय काथड, एम.ए. पार्ट टु की तैयारी
कर रहा था, और पुलीस तूट पडी 
पुलीस मारते वक्त गालियों की बौछार करती हुई कह रही थी, "हमने तूम्हारे बाप का पूतला नहीं तोडा है.......वहां गांव में तूम्हारा बाप चमडा मसल रहा है...." पुलीस जब विद्यार्थीओं को मार रही थी तब होस्टेल के दरवाजे पर सारे मीडीयावाले इकठठा हो गए थे, लेकिन किसी को पुलीस ने होस्टेल में जाने नहीं दिया था.


दिलीप मकवाणा, पुलीस ने इतनी बेरहेमी से मारा कि
चलने के काबिल भी नहीं रहा 
विद्यार्थियों को पुलीस  मालवियानगर पुलीस स्टेशन ले गई और उनको पूछा कि किस किस को चोट लगी है. जब कुछ विद्यार्थीओं ने अपनी चोट के बारे में बताया तो उन्हे सरकारी अस्पताल में चिकित्सा के लिए भेजा गया और उन सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. सरकारी अस्पताल में विद्यार्थीओं ने अपनी चोटों के बारे में जो कुछ बी बताया, वह सारे तथ्य एमएलसी के दाक्तरी सर्टिफिकेटों में मौजुद है. चुंकी होस्टेल सरकारी है, इस लिए होस्टेल के गृहपति ने सरकार के समाज कल्याण विभाग को कम्प्लेइन करके सारी बातें बताई थी, फिर भी कोई भी कदम उठाया गया नहीं था.

मुसलमान औरतों ने बताया कि दंगे में किसी को कुछ
नुकसान नहीं हुआ, प्रतिमा खंडन के बारे में मालुम नहीं
हम बाद में प्रतिमावाले क्षेत्र गांधी वसाहत में गए थे और मुसलमान महिलाओं से मिले थे. उन्होने बताया था कि किसीको भी उस दिन दंगे में कोई नुकसान नहीं हुआ था. लेकिन दलितों में अबी भी पुलीस का आंतक बना हुआ था और लोग अपने घरों को ताला लगाकर भाग निकले थे. गुजरात में दलितों को हिन्दुत्व के पाठ शीखाने का नरेन्द्र मोदी का यह एक ऐसा तरीका है, जिसके बारे में अभी भी दलितों की आंखें खुली नहीं है.


शायद हिन्दुत्ववादियों को यही बात चूभती है .....
इस क्षेत्र में दलित और मुसलमान के बीच कैसा सदभाव था, इसका बहुत अच्छा उदाहरण हमें देखने को मिला. बाबासाहब की प्रतिमा के ठीक सामने गोविंदभाई अघोरा नाम के दलित के घर पर लगाई हूई तक्ती पे लिखा है, 'निगाहे करम' और उसके साथ कुराने शरीफ का चित्र भी है. दलितों और मुसलमानों के बीच कैसा सौहार्द है इसका इससे बडा प्रमाण आपको कहीं भी नहीं मिलेगा. शायद हिन्दु कट्टरपंथियों को यही बात चूभती होगी, जिसे नष्ट करने के लिए प्रतिमा खंडन की अफवाह फैलाई गई थी.