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Monday, October 29, 2012

थानगढ इम्पेक्ट


 जुनागढ में दो गुट के बीच तू तू मैं मैं हो रही थी. उस वक्त दरबार जाति का एक पीएसआई वहां से जा रहा था. अगर वे दोनों गुट सवर्णों के होते तो पीएसआई ने दोनों गुटों को प्यार से समजाया होता. मगर, उसमें एक गुट दलितों का था. पीएसआई ने उनमें से एक दलित की जाति पूछी. उसने जब बताया कि वह दलित है, तब पीएसआई ने, "साले तुम थानगढवाले" ऐसा कहकर गाली दी. दलित युवान ने क्या किया उसका बयान मैं यहा नहीं लिखुंगा, मगर उसने वही किया जो डॉ. अंबेडकर का एक बेटा, एक स्वाभिमानी दलित करता है. नतीजा ये आया कि पीएसआई ने उसे गोली मारी. ये है थानगढ का इम्पेक्ट.

Sunday, October 28, 2012

एक और कत्ल का हम इंतजार नहीं कर सकते.


अहमदाबाद में दलित संघर्ष मंच के कार्यक्रम में पांचसौ से ज्यादा लोगों ने अपने खुन से अंगुठा लगाकर राष्ट्रपति को आवेदनपत्र भेजने के अभियान का प्रारंभ किया. गुजरात में दलितो पर हो रहे जातिवादी हमलों के खिलाफ इस अभियान में एक लाख लोगों का समर्थन जुटाने का हमारा संकल्प है.

किसी भी जगह किसी दलित की हत्या होती है तो निकल पडते है लोग, दो दिन धिक्कार सभा करते है, शहरों में मोमबत्तियां लेकर रेलियां करते है, गवर्नर को मिलते है, प्रेस कोन्फरन्स करते है, जो पक्ष सत्ता में होता है, वह मामला रफा दफा करने की ताक में रहता है और जो विपक्ष में होता है, वह इस मुद्दे को उछाल उछाल कर अपनी रोटियां सेकता है, दलित पत्रकार विशेषांक निकालते है, दलित कवि कविता लिखता है, और फिर सो जाते हैं सब, अगले दिन किसी और जगह किसी की कत्ल का इन्तजार करते है, कुछ चालाक लोग प्रोजेक्ट बनाते है और बटोरते है ढेर सारा फोरीन फन्ड. मगर हमने सोचा है दो कत्लों के बीच के समय में हमारे सो रहे समाज को जगाना.
 
हम एक और कत्ल का इंतजार नहीं कर सकते.

Wednesday, October 24, 2012

थानगढ और मीडीया


थानगढ के दलित विद्रोह को (अंग्रेजी अखबारों को छोडकर) गुजराती मेइन स्ट्रीम मीडीया ने नजर अंदाज किया. एक लाख लोग इकठ्ठा हुए और मीडीया ने चुप्पी साधी. 1981 में आरक्षणविरोधी आंदोलन में पांच लोग इन्कमटेक्स सर्कल के पास "आरक्षण हटावो, देश बचावो" के बेनर लेकर खडे रहते थे और अखबारों में फ्रन्ट पेइज पर पांच कोलम का फोटो छपता था. हमें इस बात का कोई अफसोस नहीं है. मीडीया चाहता है कि दलित विद्रोह कांग्रेस या बीजेपी के नेतृत्व में ही पनपना चाहिए. मीडीया की ये प्रकृति हम जानते हैं. मगर, जो लोग दलित पत्रकारत्व का एजन्डा लेकर खडे हैं, वे क्या लिख रहे हैं, एक नज़र उन पर भी डालें. 

'नया मार्ग' (ता. 16 अक्तुबर, 2012) ने थानगढ के दलित महा संमेलन के बारे में एक शब्द भी नहीं लिखा. सोनिया गांधी की राजकोट सभा को उन्हो ने ऐतिहासिक बताया. क्या 'नया मार्ग' के गांधीवादी तंत्री इन्दुकुमार जानी को आंबेडकर के बेटों और बेटियों का इस तरह बडी तादाद में इकट्ठा होना अच्छा नहीं लगा? 'समाज सौरभ' राजकोट से प्रसिद्ध होता है. उसने थानगढ हत्याकांड का पुलिस वर्झन जैसा का तैसा लिख दिया. राजकोट थानगढ से सिर्फ चालीस किलोमीटर की दूरी पर है. समाज सौरभ के तंत्री ने थानगढ जाकर सच्चाई का पता लगाना मुनासिब नहीं समजा. 'दलित अधिकार' ने थानगढ पर बहुत सुंदर विशेषांक निकाला. मगर उसमें भी एक लेख में समाज सौरभ की तरह घटना का पुलिस वर्झन ही लिख दिया, जिसे पढ़कर लगता है कि फायरिंग उचित था. 

Saturday, October 13, 2012

थानगढ दलित अत्याचार - सीआईडी रीपोर्ट


थानगढ में पीएसआई जाडेजा ने सरासर गलत एफआईआर दर्ज करके तीन दलित युवकों की हत्या की थी. यह सच्चाई सीआईडी क्राइम के रीपोर्ट में अब सामने आ चूकी है. जिसमें सीआईडी क्राइम ने कहा है कि सेक्शन 307 हटा देनी चाहिए. हमने कल प्रेस कोन्फरन्स में यह रीपोर्ट मीडीया समक्ष जारी किया था. और संदेश, गुजरात समाचार, दिव्य भास्कर, गुजरात टुडे, टाइम्स ऑफ इन्डीया, इन्डीयन एक्सप्रेस, डीएनए में यह न्यूझ आ चूका है. कुछ ही घंटो में हम यह रीपोर्ट नेट पर रखेंगे. सभी साथी उसे पढकर लोगों तक हमारी बात रखेंगे.

Thursday, October 11, 2012

मोदी-बीजेपी को नाचने दो, हम लडेंगे सम्मान के लिए


थान में दलित बच्चों की हत्याओं से अगर आप का दिल कांप उठा है तो इस बार नवरात्री के दिनों में आपके क्षेत्र में हमारे लोगों को समजायें कि वे रास-गरबा की नौटंकियों से दूर रहे और दिवाली में भी शोक मनाकर फटाखें फोडने से भी दूर रहे. मोदी और बीजेपी को जितना नाचना है, नाचने दें. मगर हम हमारे समाज के सम्मान के लिए लडेंगे.