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Thursday, December 18, 2014

सवर्ण समस्या




सवर्ण समस्या इस देश की सबसे बडी समस्या है. सवर्ण समस्या सवर्ण मानसिकता से पैदा होती है. सवर्ण मानसिकता एक तरह का सामाजिक-सांस्कृतिक मनोरोग है. इस रोग के कुछ लक्षण है. जैसे कि इस रोग के शिकार मनोरोगी खुद को दुसरी जातियों से उंचा समजते हैं. तथाकथित नीची जातियों की तुलना में वह खुद को ज्यादा होंशियार, चालाक और सदगुणी मानते हैं और मनवाते है. और दूसरी नीची जातियों का उद्धार करने के लिए खुद का जन्म हुआ है ऐसा भी समजते हैं. 

सवर्ण समस्या बहुत पुरानी है. प्राचीन काल में भगवदगीता  ग्रंथ में जब इश्वर के मुंह से ऐसा कहलवाया गया कि चार वर्ण मैंने रचे हैं, तबसे सवर्ण मानसिकता का जन्म हुआ है ऐसा कह सकते है. सवर्ण मानसिकता से पिडित लोग दूसरो को समस्यारूप मानते है. “इस देश में मुस्लिम समस्या, ख्रिस्ती समस्या, आदिवासी समस्या, दलित समस्या है,” ऐसे तर्क करते हुए सवर्ण विद्वान अच्छी किताबें लिखते रहते हैं.


Monday, June 9, 2014

सुवर्ण (मृग) जयंती रोजगार योजना


2009 में एक सरकारी आदमी अहमदाबाद के राणीप वोर्ड में आई नट बस्ती में गया और सुवर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के तहत बीपीएल की लीस्ट में नाम दर्ज करने के लिए सभी की अर्जी ली और उन्हे उस अर्जियों की रीसीप्ट भी दे दी. रसीप्ट में इनवर्ड नंबर, तारीख, वोर्ड नंबर, वोर्ड का नाम, अर्जी करनेवाले का नाम तथा अर्जी कास्वीकार करनेवाले का नाम सब लिखा गया. 2009 से आज तक नट की बस्ती के लोग इस रीसीप्ट को हाथ में पकडकर बैठे रहे और कोई उन्हे वापस मिलने नहीं आया. उन्हे मालुम भी नहीं कि उनका नाम बीपीएल यादी में है या नहीं. 

जब हम रेशनकार्ड दिलवाने के लिए इन्हे लेकर अहमदाबाद के अन्न नियंत्रक की कचहरी ले गए, तब वहां ओफीसर ने बताया कि यह लिस्ट अहमदाबाद म्युनिसिपल कोर्पोरेशन की है, हमें इसे कोई लेना देना नहीं है. तब हमें मालुम पडा कि गरीबों को बीपीएल की लीस्ट में नाम दर्ज करवाने के लिए यहां गुजरात में कोई सींगल वीन्डो सीस्टम नहीं है. और दूसरा, कोर्पोरेशन की बीपीएल यादी से गुजरात सरकार के अन्नविभाग को कोई सरोकार नहीं है. मोदी गुजरात में उस टेन कमान्डमेन्ट का अमल नहीं कर सके और दील्ली जाकर बडाशे मारने लगे. 

अब हमें यह भी मालुम पडा कि यह सुवर्ण (मृग) जयंती रोजगार योजना अब बंध पडी है. 

Thursday, April 24, 2014

एफआईआर में ‘हरिजन’ शब्द का इस्तेमाल नहीं होगा, गुजरात के डीजी ने कहा



गुजरात की पुलीस अभी भी एफआईआर में प्रतिबंधित ‘हरीजन’ शब्द का इस्तेमाल करती है, इसके खिलाफ आवेदनपत्र देने के लिए दलित हकक रक्षक मंच का एक शिष्ट मंडल 4 अप्रैल 2014 के दिन गुजरात के पुलीस महानिर्देशक (डीजी) पी. सी. ठाकुर से मिलने गया था और डीजी ने शिष्ट मंडल से बात की थी और गुजरात के तमाम पुलीस स्टेशनों को ‘हरिजन’ शब्द का एफआइआर में इस्तेमाल नहीं करने का आदेश देने का वचन दिया था. 

हरीजन’ शब्द एम. के. गांधी ने दिया था, मगर इस शब्द से लेकर काफी विवाद है. हरिजन दक्षिण भारत में देवदासी की संतान को कहा जाता है और वैसे भी हिन्दुओं ने इस शब्द में अपनी पारंपरिक घृणा इस तरह से भर दी है कि यह शब्द अब अस्पृश्यता का पर्याय बन गया है. अब अनुसूचित जातियां खुद इस शब्द से किनारा कर रही है. मगर अब भी गुजरात की पुलीस जब एफआईआर दर्ज करती है, तब अनुसूचित की व्यक्ति के नाम के आगे हरिजन लखनेसे झिझकती नहीं है. 

वर्ष 2011 में राजकोट में डो. बाबासाहब आंबेडकर की प्रतिमा तूटने की अफवाह बीजेपीवालों ने फैलाई थी और उसका जिम्मा मुसलमानों पर डाल दिया था और जब दंगा हुआ तो बडे पैमाने पर दलितों को पकडकर जेल में ठुंस दिया था. ऐसी एक एफआईआर में तेरह वाल्मीकिओं पर दंगा करने का तहोमत राजकोट बी डीवीझन की पुलीस ने लगाया था और उस एफआईआर में तमाम वाल्मीकियों के नाम के आगे हरीजन लिखा था. दलित हक्क रक्षक मंच ने उस वक्त राजकोट में दलितों पर हुए सीतम के बारे में गुजरात के डीजी से फरियाद की थी, तब डीजी ने तमाम एफआइआर हमारी जानकारी के लिए हमे भेजी थी. 

एफआईआर में लिखे गए हरिजन शब्द के खिलाफ हमारा विरोध दर्ज करने के लिए डीजी समक्ष दलित हक्क रक्षक मंच का शिष्ट मंडल गया था, उसमें गुजरात सरकार के (निवृत्त) अन्डर सेक्रेटरी डी. के. राठोड, निर्जरी राजवंशी तथा राजेन्द्र वाढेल थे. शिष्ट मंडल ने डीजी को 22 नवम्बर 2011 कै भारत सरकार का परिपत्र क्रमांक 17020/64/2010-SCD (R.L.Cell) दिखाया. डीजी ने उनके साथे संमति जताई थी और इस प्रतिबंधित शब्द का इस्तेमाल नहीं करने के लिए गुजरात पुलीस को आदेश देने का वचन दिया है.

Saturday, April 12, 2014

बूनियादी अधिकार आंदोलन पहल का प्रेस स्टेटमेन्ट



भाजपा के मोडेल स्टेट गुजरात में गुड गवर्नन्स के नारों के बीच, आम महिलाओं के किडनेपिंग्स के अपराध दोगुना हुए हैं और अनुसूचित जातियों की महिलाओं से दुष्कर्म की वारदातों में 63 फीसदी वृद्धि हूई है. यहां आम और खास महिलाओं के प्रति शासन का रवैया भेदभावपूर्ण है. खास महिला के लिए सरकार एटीएस की पूरी फौज तैनात कर सकती है, मगर आम महिलाओं के लिए ऐसी कोई सतर्कता दिखाई नहीं देती. 

गुजरात के डीजी की कचहरी के आंकडों से पता चलता है कि 1990-2000 के दसक में 192 दलित महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ था, जब कि 2000-2010 के दसक में यह आंकडा 313 का है. दोनों दसक कि तुलना कि जाय तो स्पष्ट दिखता है कि दुष्कर्मो की वारदातों में 63 फीसदी बढौतरी हूई है. शर्मनाक बात तो यह है कि दलित महिला को दुष्कर्म के बदले में सरकार की तरफ से रू. 25,694 कम्पेन्सेशन के तौर पर दिया जाता है. जिस राज्य में शासन के सूत्र आरएसएस के प्रचारक के हाथ में हो और जो हंमेशां सामाजिक समरसता का दावा करता हो, उस राज्य के लिए यह बात शर्म की है या नहीं इसका अंदाजा लगाना मुस्कील नहीं है.

नेशनल क्राइम रेकोर्ड्झ ब्युरो के आंकडों के मुताबिक साल 2000 में गुजरात में दुष्कर्म की वारदातें 330 से बढकर 2012 में 473 हो गई है, महिलाओं के किडनेपिंग्स की वारदातें 868 से बढकर 1527 तथा डोमेस्टिक वायोलन्स की वारदातें 3339 से बढकर 6658 हो गई है. महेंगाई के लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार हो सकती है और है भी, मगर राज्य में महिलाओं की सुरक्षा के लिए तो राज्य सरकार संपूर्णतया जिम्मेदार है. 

सरकार के खुद के धी स्टेट डोक्युमेन्ट ओफ ह्युमन ट्राफिकिंग इन गुजरात के अनुसार 2006 से 2011 के समय में 47,052 लोग गुमशुदा हुए, जिसमें से 13283 अभी भी मिसिंग है. इन गुमशुदा लोगों में 5786 महिलाएं और 2293 नाबालिग लडकियां थी. रीपोर्ट के मुताबिक, इस समय में जब महिलाए गुमशुदा हो रही थी, तब इम्मोरल ट्राफिक प्रीवेन्शन एक्ट, 1956 के तहत कारवाई करने में पुलीस निष्क्रिय रही थी. 

नारी सवर्ण हो या दलित, हिन्दु हो या मुसलमान, उसके प्रति शासन का रवैया पक्षपाती है. नारी पर अत्याचार करनेवाला कोई भी जाति-धर्म का हो, उसके प्रति कडक कारवाई की हम मांग करते हैं.
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 -      राजेश सोलंकी (9898650180)