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Tuesday, March 25, 2014

सामाजिक समरसता का घंटा बजता रहा और ......



गुजरात में पीछले बीस साल से सामाजिक समरसता का घंटा बजता रहा और उसकी जोरदार आवाज़ में उन 537 दलित स्त्रियों की भयावह चीखें दब गई जिनके साथ दिनदहाडे दुष्कर्म हुआ. बडी शर्म की बात तो यह थी कि यह सामाजिक समरसता का घंटा बजानेवाले लोगों में उन दलितों के चेहरे भी दिखें, जिन्हों ने इन बीस सालों में स्कुटर छोडकर स्विफ्ट मे घुमना शूरू कर दिया, जिनके बाल घने काले होते गए, जिनकी औलादें अमरिका, युरोप में सेटल होने लगी, जिनके दो पेट्रोल पंपो के दस हूए, जिनकी संपत्ति में सौ गुना इजाफा हुआ. गुजरात में अपने ही भाईओं कि कत्ल और अपनी ही बहनों पर दुष्कर्म के खिलाफ नहीं बोलने की बहुत बडी किंमत उन्होंने वसूल की. जिनको पैसों की ज़रूरत थी, उन्हे पैसा मीला, और जो आंबेडकर एवोर्ड, नरसिंह महेता एवोर्ड, कबीर एवोर्ड के महोताज थे उन्हे एवोर्ड दिए गए. क्रान्ति की कविता करनेवाले समाजकल्याण विभाग के गांधीनगर की कचहरी में मख्खियों की तरह भीनभीनाने लगे. कांग्रेस के नालायकों ने भी इस प्रश्न पर नारेबाजी करना मुनासीब नहीं समजा. राहुल गांधी उन 537 औरतों के घर जा सकते थे, खाना खा सकते थे. मगर या तो उनके चमचों ने उन्हे इस के बारे में ब्रिफिंग नहीं किया या उन्हे कोई दिलचश्पी नहीं थी. दलितों के नाम पर करोडों को फोरीन फंड एंठनेवाली किसी भी एनजीओ ने बोट क्लब पर रैली नहीं की. किसी ने इन्डीया गेइट पर मोमबत्ती नहीं जलाई. अर्नब गौस्वामी, विनोद मेहता, एम जे अकबर, अंकलेसरीया ऐयर, प्रसून वाजपेई ........ किसी ने अपनी चैनल पर डीबेट नहीं छेडी या अपनी कोलम में दो शब्द नहीं लिखे.