Total Pageviews

Tuesday, January 27, 2015

मोदी का झाडु

मोदी के झाडु के बारे में गलतफहमी मत करना. वह कोर्पोरेट इन्डीया का झाडु है. मीडीया की ग्लेमर से चमकता, दमकता, खुशनसीब, श्रीमंत झाडु. मोदी के स्वच्छंदता अभियान (स्वच्छता अभियान नहीं) के समर्थन में कोर्पोरेट विश्व के महान सीतारे अनील अंबाणी और अमिताभ बच्चन झाडु लेकर मुंबइ की सडकों पर आ गए यह कोई संयोग नहीं था. मोदी का यह झाडु प्रेम अमरिका से वापस आने के बाद फुट फुट कर निकल पडा यह भी कोइ अकस्मात नहीं था.

मोदी अमरिका और अमरिकी सभ्यता से प्रभावित है. वह अमरिका में बसे एनआरआई के सपनों का भारत रचना चाहते हैं. मगर, अमरिकी और भारतीय माइन्डसेट में आकाश पाताल का अंतर है. भारत में गंदगी दिव्य है. अमरिका में गंदगी पार्थिव है. भारत में सडकों पर गोबर पडा हो तो इसे कोई गंदगी नहीं समजता. और गोबर में तो तैतीस करोड देवताओं का वास होता है. कोई भी शास्त्रसंमत हिन्दु इस गोबर को हटाएगा तो रौरव नर्क में जाएगा.

भारत में गाय माता समान है. अमरिकीओं के लिए गोबर और सुवर का मल एक समान है. अमरिकीओं की स्वच्छता सेक्युलर है, जब कि हिन्दुओं के लिए स्वच्छता निजी चीज़ है. इसी लिए तो उन्हों ने गंदगी हटाने के लिए दो हजार सालों से एक जाति-विशेष का सर्जन किया है. रास्तें साफ करना, सर पे मैला ढोना, सार्वजनिक और निजी पायखानों को साफ करना, ये सारी चीज़ें कभी भी समाज की सामूहिक जिम्मेदारी नहीं माना गया. यहां तक कि देश में लोकतंत्र के आगमन पश्चात जब विधायक पंचायत कानून बनाने बैठें तब गंदगी साफ करने का जिम्मा सामाजिक न्याय समितिओं पर लादा गया था, जिसमें दलित-वाल्मीकि इस काम करने के लिए बैठे ही थे.

मोदी का झाडु-प्रेम राष्ट्रीय दंभ का निर्लज्ज प्रतीक है. जिसने दो हजार सालों से इस देश में सफाई अभियान चलाया, जरा, उसके योगदान को तो ध्यान में रखो. तुम्हारे फोटो सेशन में, अखबारों में, टीवी चेनलों में मेरी वह सफाई कामगार बहेन तो आती ही नहीं है, जो रात-दिन सर झुकाकर, बिना ग्लोव्झ, नंगे पैर, गर्भवती हो तो भी, तुम्हारे जैसे बेशरम और हरामी लोगों के आंगनों को साफ करती रहेती है. मोदी ने कभी भी इस बहेनों के पास जाकर पुछा कि बहेन तुम्हारें पांव के छाले दूखते हैं क्या? गुजरात में वढवाण हो या गोधरा, किस नगरपालिका में सफाई कामगार को पर्याप्त तनख्वाह मिलती है? मोदी ने अपने दस साल के शासन में कितने सफाई कामगारों को कायम किया? क्या गुजरात, क्या भारत, वाल्मीकि समुदाय के प्रति हिन्दु समाज का पक्षपातीपूर्ण रवैया बरकरार है.


स्वामीनारायम के संत झाडु लेकर निकल पडे हैं. जरा उनके मंदिरों में जाकर देखो. सफाई का काम उनके सेवक कर लेते हैं. वाल्मीकि मंदिर में घूसेगा तो छुआछुत का प्रश्न पैदा होगा ना? इस संप्रदाय ने तो इस तरह इस प्रश्न का सोल्युशन ला दिया है. मोदी भी अपने अनूठे अंदाज़ से इस सवाल से नीपट रहे है. जो लोग सचमुच सफाई कर रहे हैं, उनकी उपेक्षा करों. उन्हे कोनें में धकेल दो. उन्हें हो सके इतना कम वैतन दो. उनके संतान कभी भी क्वोलीटी शिक्षा प्राप्त न कर सके इसका पर्याप्त बंदोबस्त करो. सफाई को श्रीमंत लोगों की होबी बना दो और सफाई कामगार खुद इस विषचक्र से कभी भी बाहर ना निकल सके इस बात को सुनिश्चित करो. देश में हाल ही में चल रहे स्वच्छता अभियान का यह खतरनाक संदेश है. 

No comments:

Post a Comment